हा जन्नत ही तो हूं मैं।

अगर इस ढलती सांज के नज़ारे लुट सको 

तो जन्नत हूं मैं,

अगर इन मेहकाती हवाओंको महसूस कर सको

तो जन्नत हूं मैं,

अगर सागर पर बिखरे हुए चांदनी की चादर को 

और लहरों की वाणी को अपने मन के दुखों का मरहम बना सको

तो जन्नत हूं मैं।

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