माँ है मेरी ढाल
तो बाप पूरी फौज है
ना जाने कितनी जंगे लड़कर
करवायी मेरी मौज है
ख्वाब हैं जो मेरे
वे ही उसकी सोच में है
जान ना पाया मैं
उस मुस्कान के पीछे
कितनी गहरी खँरोच है
मेरी उड़ान के सपनों से
वह सुबह चार बजे ही जाग जाता था
फिर भी ना जाने कैसे
हर रविवार मुझे घुमाने ले चलता था
ले-लेकर उधार
करवायी मेरी खूब पढ़ाई – लिखाई
सोच कर मेरे भविष्य में
कहीं कम ना पड़े स्याही
हर मौसम से लड़कर
मुझे सारी दुनिया दिखायी है
आज भी मेरे उसने
डूबती नैया बचायी है |
पिता
