इस बारिश के इतने गुण भी न गाओ
ये बारिश भी बड़ा भेदभाव करती है!
कहीं पर हल्की फुहार बनकर शबनम जैसे
तो कहीं पर घोर तूफान जैसे बरसती है|
किसी पे मुस्कुराहट
तो किसी के माथे पर झुर्रियां बनकर चमकती है|
किसी को सुकून से घर बैठने की इजाज़त देती है,
तो किसी के टपकती छत में बंधक बना देती है|
किसी को चाय और किताबों से मिलाती है,
तो कहीं किसी की रोज़ी रोटी भी छीन लेती है|
कहीं कोई आज़ादी से भीग लेता है,
तो कभी किसी की जुबान भी सूखी रह जाती है|
इस बारिश के इतने गुण भी न गाओ
ये बारिश भी बड़ा भेदभाव करती है!