न तीर न कमान है,
टूटा हुआ सम्मान है,
जिम्मेदारियों की जंजीर है,
और बस कर्म ही कटार है।
सपनों से बिछड़ रहा,
हकीकत से है तू जुड़ रहा,
हालात से लड़ रहा,
थक रहा न तू रुक रहा।
माथे-पर झुरियों की ढाल है,
तपती हुई खाल है,
ज़िंदगी की बाज़ी है,
पर हार से न राजी है।
जीत की ज़िद कर रहा,
नित्य सफर पर लड़ रहा,
कौनसा है मंज़र ढूँढ रहा,
हर दिशा तू आगे बढ़ रहा।
न वीर का लबादा है,
न सिर पे कोई ताज है,
न ठाट का लिबास है,
तू ही तो खरा वीर है।
ऋत्विक